युद्ध से तबाह हुए सीरिया को भारत की मदद, शिक्षा व खाद्य सामग्री कर रहे प्रदान

सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ 6 साल पहले शुरू हुई शांतिपूर्ण बगावत पूरी तरह से गृहयुद्ध में तब्दील हो चुकी है। इसमें अब तक 3 लाख लोग मारे जा चुके हैं। संघर्ष शुरू होने से पहले ज़्यादातर सीरियाई नागरिकों के बीच भारी बेरोज़गारी, व्यापक भ्रष्टाचार, राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव और राष्ट्रपति बशर अल-असद के दमन के ख़िलाफ़ निराशा थी।
बशर अल-असद ने 2000 में अपने पिता हाफेज़ अल असद की जगह ली थी। अरब के कई देशों में सत्ता के ख़िलाफ़ शुरू हुई बगावत से प्रेरित होकर मार्च 2011 में सीरिया के दक्षिणी शहर दाराआ में भी लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन शुरू हुआ था। सीरिया की असद सरकार को यह असहमति रास नहीं आई और उसने आंदोलन को कुचलने के लिए क्रूरता दिखाई। सरकार के बल प्रयोग के ख़िलाफ़ सीरिया में राष्ट्रीय स्तर पर विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया। जो की गृह युद्ध में तब्दील हो गया।
पूरे विश्व की निगाह युद्ध में घिरे सीरिया पर टिकी हुई है। यहां तुर्की के सैन्य अभियान ने सवाल खड़ा कर दिया है कि देश को युद्ध से कब मुक्ति मिलेगी? इसी बीच भारत सीरिया के लोगों की मदद कर रहा है और उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव रख रहा है।
युद्ध प्रभावित देश को भारत दवाओं और खाद्य आपूर्ति के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी मदद कर रहा है। भारतीय विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएट, पोस्ट-ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों और पीएचडी के अध्ययन के लिए करीब एक हजार सीरियाई छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान किया जा रहा है।
सीरिया के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के भार के इस कदम के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि ये निकट भविष्य में अफ्रीकी महाद्वीप में सफलता की कहानियों को दोहराएगा। बता दें कि सीरिया के कई पूर्व और वर्तमान राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति भारत में शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। भारत में सीरिया के राजदूत रियाद अब्बास भी ऐसा ही सोचते हैं और भारत के इस कदम से खुश हैं।
भारत कई तरह से कर रहा मदद
समाचार एजेंसी आइएएनएस के एक इंटरव्यू में अब्बास ने कहा कि सीरिया का भारत कई तरह से मदद कर रहा है। वे सीरियाई लोगों को दवा और भोजन मुहैया कराकर मदद करते हैं। मोदीजी ने इस पहल की शुरुआत हमारे छात्रों के लिए की है।